स्नेह और आशीर्वाद के साथ

24 अप्रैल 2012

अक्षय तृतीया को भी मनाया जाता है हमारा जन्मदिन

२४ अप्रैल को हिन्दी महीनों के अनुसार अक्षय तृतीया पड़ रही है..आज से चार वर्ष पूर्व हमारा जन्म अक्षय तृतीया को ही हुआ था...उस वर्ष अक्षय तृतीया ७ मई को पड़ी थी..
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घर में हमारा जन्मदिन इसी कारण से दो बार मना लिया जाता है..एक बार हिन्दी महीनों के अनुसार अक्षय तृतीया को और ७ मई को भी....
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आप लोगों के आशीर्वाद की सदा आकांक्षा रहेगी>>


08 अप्रैल 2012

पार्टी, मोबाइल और हमारा स्टाइल से बात करना

अभी पिछले महीने हमारे पड़ोस की बगल वाली दीदी की शादी थी। शादी के कुछ दिनों के बाद उनका अपनी ससुराल से वापस आना हुआ। वे कुछ दिन अपने घर में रही फिर उनको विदा करवाने के लिए उनके पतिदेव यानि कि हमारे जीजा जी आये।

मोहल्ले के आसपास के घरों में दीदी हम सभी से बड़ी हैं, इस कारण से हम सभी बच्चे लोग अपने जीजा जी के पीछे पड़ गये पार्टी के लिए। बस फिर क्या था, जीजा जी भी नये-नये थे, हम सभी के चक्कर में फँस गये बेचारे और ले गये एक होटल में पार्टी के लिए।



हम सभी ने वहाँ जम कर हंगामा किया, मस्ती की और खूब जी भर के बढ़िया-बढ़िया व्यंजन चखे। इसी पार्टी के दौरान हमारा मोबाइल बज उठा। अब किसी ने फोन किया है तो बात तो करनी ही थी, सो हमने भी बात की।



हमारे बात करने के दौरान ही किसी ने हमारी फोटो खींच ली। अब हम थोड़े से स्टाइल में बैठे बात कर रहे थे तो इसमें हँसने की क्या बात? घर पर लौट कर जिसने भी हमारी इस फोटो को देखा, वो बहुत हँसा। हमारी मम्मा ने भी ये फोटो बहुत लोगों को दिखाई।

अब हमने सोचा कि आप लोगों को भी ये फोटो दिखायें और पूछ लें कि यदि हम स्टाइल में बैठे बात कर रहे हैं तो क्या जोकर दिख रहे हैं? क्या इसमें हँसने वाली बात है?


(विशेष-एक विशेष बात आपको यह बतानी है कि हमारे दादी, पिताजी, मम्मा लोग हमको असली मोबाइल छूने भी नहीं देते हैं। इस कारण हम अपने पर्स में एक खिलौना मोबाइल रखते हैं। उसी से कभी-कभी स्टाइल दिखाने के लिए झूठमूठ की बात करनी शुरू कर देते हैं।)

07 अप्रैल 2012

हमारे नाम की तरह की ड्रेस भेजी मौसी ने...

आप सभी को यह तो पता ही है कि हमको घर में कई नामों से बुलाया जाता है। दादी राजा बेटा कहती हैं, मम्मा सोना कहती हैं, पिताजी कभी बिटोली कहते हैं तो कभी रिद्धि कहते हैं, हमारे सबसे छोटे चाचा तो हमें कहते हैं मोड़ी, मामा लोग कहते हैं पायल, पूजा बुआ कहती है कुहुक पर अधिकतर लोग हमारे बड़े चाचा का रखा नाम परी ही बोलते हैं। मोहल्ले के लोग और जानपहचान के लोग भी हमको परी के नाम से ही बुलाते हैं।



इस बार हमारे घर में दो-दो शादियाँ थीं और हमारे नाना जी आये थे। आपको बतायें कि हमारी मौसी ने हमारे नाम के हिसाब से हमारे लिए एक सुन्दर सी ड्रेस भेजी थी। बिलकुल परी के जैसी। शादी की भड़भड़ में हमने उस ड्रेस को पहन कर फोटो नहीं खिंचवा पाई थी तो अभी एक दिन हमें मम्मा ने परी वाली ड्रेस पहनाई और हमारे पिताजी ने हमारी फोटो खींच ली। उन्होंने खूब सारी फोटो खींची, हम आपको उसमें से दो-तीन फोटो ही दिखा पा रहे हैं।

देखकर बताइयेगा कि हम कैसे लग रहे हैं, परी की ड्रेस में?


06 अप्रैल 2012

जूस पीकर और फल खाकर बनाई जा रही है सेहत


आजकल हम अपनी सेहत बनाने में लगे हैं। सभी लोग कहते हैं कि हम बहुत दुबले हैं। अब कितनी राटी खाई जाये? हमने तो सोच लिया है कि मुसम्मी का, संतरे का जूस पिया जायेगा, खूब सारे केले और अंगूर खाये जायेंगे। इससे ताकत भी आयेगी और तन्दरुस्ती भी बढ़ेगी।



आज हमने अपनी मम्मा से कहा तो उन्होंने संतरे का जूस निकाल कर दिया। पिताजी कहते हैं कि बाहर जूस अच्छा नहीं मिलता है, इस कारण घर में निकाल कर हमको जूस दिया जाता है।

हमारे पास हमारा एक छोटा सा गिलास है, जो हमारे बड़े चाचा लेकर आये थे। हम उसी में जूस भर-भर के कई सारे गिलास पी लेते हैं। ये देखिये, जूस हुआ खतम, अब नम्बर है केलों का, अंगूर का।



05 अप्रैल 2012

हाथ साफ किये बैडमिन्टन में

इधर बहुत-बहुत दिनों से आप सभी से कोई मुलाकात नहीं हो पाई। जैसा कि आपको पहले बताया था कि हमारे इस ब्लॉग पर हमारे बारे में हमारे पिताजी ही लिखते हैं, हम तो बस दिनभर कुछ न कुछ करते रहते हैं और वे वही सब देखकर आप सभी के बीच पहुँचा देते हैं।

ये उठाई चिड़िया

स बार ऐसा हुआ कि बहुत लम्बा समय निकल गया। घर में चाचा लोगों की शादी थी। दो चाचाओं की शादी थी, जनवरी में लगातार। इस कारण से हमें और हमारे पिताजी को व्यस्त होना ही होना था। आखिर पिताजी अपने सभी भाई-बहिनों में बड़े हैं तो हम भी अपने घर में सबसे बड़े हैं।


ये तैयारी शाट लगाने की


खैर...आज मौका निकाल कर हमने कहा कि कुछ तो हमारे ब्लॉग पर लिख दीजिये। पिताजी के पास कुछ दिनों पुरानी फोटो थी हमारी, बैडमिंटन खेलने की..बस वही आपको बताने जा रहे हैं।

असल में हमारी गली में पर्याप्त जगह है और चाचा लोग वहीं पर रोज रात को बैडमिंटन खेलते हैं। हमें भी शौक लगा खेलने का...। अब बड़ा सा रैकेट तो उठाये नहीं उठता है सा हमारे लिए छोटे-छोटे से दो रैकेट लाये गये। हम उन्हीं के साथ खेल लेते हैं।


और ये लगा स्मैश

आप खुद ही अंदाजा लगा लो कि हमें कितनी अच्छी तरह से खेलना आता है।