स्नेह और आशीर्वाद के साथ

18 नवंबर 2011

बन गई गली..अब दौड़ेगी हमारी साइकिल

उरई में हमारा घर जहां बना हुआ है वो गली बहुत ही छोटी है। हमारे आसपास की सभी सड़कें और गलियां सीसी वाली बन गईं हैं, एक हमारे घर के सामने की छोटी सी गली नहीं बन पाई थी। हमारे पिताजी ने कुछ दिनों प्रयास किये तो भी लाभ नहीं मिला। अभी कुछ दिन पहले कुछ लोग आये और हमारी गली की नाप आदि लेने लगे। इस पर जब हमारे पिताजी ने निकल कर देखा तो पता चला कि हमारी गली के भी बनने का नम्बर आ गया है।

इसके दो-तीन दिन बाद हमारे पिताजी के ही एक परिचित आये और उन्होंने बताया कि इस गली को वो ही बनवा रहे हैं। सुबह-सुबह से कई आदमी काम करने में लग गये। पुराने पड़े पत्थरों को, ईंटों को निकाला जाने लगा, जहां-जहां उबड़-खाबड़ था उसको भी एक सा किया जाने लगा। इस तरह से छोटे-छोटे काम करके हमारी गली को एकदम से अच्छा सा बनाये जाने का काम होने लगा।



हमने अपनी दादी से और बाकी लोगों से पूछा तो सबने बताया कि इस सड़क को एक सा बनाया जा रहा है इसके बाद हम इस पर साइकिल चलायेंगे। हमें यह सुनकर बहुत ही अच्छा लगा। शाम तक गली बन गई और हमें साइकिल भी नहीं चलाने दी जा रही थी। हमने थोड़ी सी जिद की तो जो अंकल गली बना रहे थे उन्होंने बताया कि इसको पूरी तरह से सूखने के बाद ही हम इस पर अपनी साइकिल चला सकेंगे।



अगली सुबह हमारी साइकिल निकाली गई, लेकिन गली में आसपास के सभी लोग उस पर पानी डालकर उसे गीला कर रहे थे। कुछ और काम भी चल रहा था तो हम साइकिल तो नहीं चला पाये पर हमने उस पर चहलकदमी करके देख लिया। अभी हम टहल ही रहे थे कि कॉलेज से पिताजी भी आ गये तो हमने उनको भी उस नई बनी सड़क पर टहला दिया अपने साथ।

अभी तो टहल कर ही देखा है, अब एक दो दिन में सही से बन जाने पर अपनी साइकिल भी दौड़ा लेंगे।


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दिनांक -- 15 नवम्बर 2011

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