स्नेह और आशीर्वाद के साथ

28 जुलाई 2009

फ़िर से तैयारी हमारे मुंडन की

आजकल हमारे तीसरी बार मुंडन होने की तैयारी चल रही है। घर में दादी अपने दिन और हिन्दी महीनों का हिसाब लगा कर बता रहीं थीं कि किस दिन मुंडन करवाना है।
जब हमारा पहली बार मुंडन हुआ था तो हम बहुत रोये थे। उस समय हम छोटे भी बहुत थे। बाल बनाने वाले को चाचा घर पर ही बुला लाये थे।


हमारे सबसे बड़े बुआ-फूफा भी आये थे। जब बाल बनाने वाले अंकल ने छुरा हमारे बालों पर लगाया तो हमने एकदम रोना शुरू कर दिया। हमारा रोना देखकर कभी हमें दादी अपनी गोद में लेतीं तो कभी हमें चाचा अपनी गोद में ले लेते। हम कभी रोते-रोते मम्मी की गोद में आ जाते।
हमको हर तरह से बहलाने-फुसलाने की कोशिश की जाती रही। जैसे ही हमारे बाल काटने बंद किये जाते हम रोना बंद कर देते और जैसे ही बाल काटने शुरू किये जाते हम फिर रोना शुरू कर देते।
जब हमारा मुंडन हो गया तो हमारी बुआ ने हमारे बिना बाल के सिर पर हल्दी लगाई।

एक तो यह रस्म है दूसरे हमारे फूफा जी ने बताया कि हल्दी के एंटीबायोटिक होने के कारण फायदा ही होगा।
हम अब चुप हो गये थे क्योंकि हमारे बाल कट चुके थे। हमारे रोने पर सबसे ज्यादा परेशानी तो हमारे चाचा को हो रही थी। वे तो घर से बाहर निकल कर दूर बैठ गये थे ताकि हमारे रोने की आवाज न सुन सकें।


दूसरी बार में जब मुंडन हुआ था तो गरमी भी बहुत थी। हमारे पिताजी ने हमें अपनी गोद में लिया और हमारे रोने के साथ-साथ हमारा मुंडन करवा दिया।
अब हमें बहुत डर लग रहा है क्योंकि अब किसी दिन फिर मुंडन होगा। वैसे अब चाचा घर पर ही हैं और चाचा के रहते हमें डर नहीं लगता है।
आप देखिये पहली बार मुंडन के बाद हम कैसे लग रहे थे। हमारी मम्मी कहतीं हैं कि मुंडन के बाद हम किसी संस्कृत पाठशाला के विद्यार्थी की तरह लगने लगते हैं।

क्या यह सच है?

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

तो फिर से संस्कृत पाठशाला की विद्यार्थी बनना है !!

रंजन (Ranjan) ने कहा…

मस्त विद्यार्थी है..

प्यार..